पौराणिक कथायें

featured, France, India, Russia

धार्मिक स्थल

featured, gadgets, Watches,

सेहत

featured, startup, Fashion, Memes,

VIDEO

featured

ये युद्ध हार गए थे हनुमान जी

    

भगवान श्री राम के परम भक्तों में सबसे उच्चतम नाम निसंकोच भक्त हनुमान का आता है। भक्त हनुमान को वीरो का वीर महावीर कहकर बुलाया जाता है। भक्त हनुमान ने अपने प्रभु श्री राम की रक्षा के लिए उनकी सेवा में अनेकों युद्ध किए और उनको जीता भी। शास्त्रों में उन्हें  संकट मोचन कहकर बुलाया जाता है क्युकी भक्त हनुमान अपने भक्तों को प्रत्येक संकट से निकालते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। महर्षि बाल्मीकि ने अपने महाकाव्य रामायण में प्रभु श्री राम तथा भक्त हनुमान के कार्यों का बहुत ही सुंदर और मनोहर उल्लेख किया है। जब आप  रामायण का श्रवण करते हैं तो आपको ज्ञात होता है की भक्त हनुमान ने अपनी निस्वार्थ भक्ति से भगवान श्री राम के मन मंदिर में अपना मुख्य स्थान ग्रहण किया है और प्रभु श्री राम के सबसे प्रिय भक्त बने है। यदि आपने रामायण का श्रवण किया हो या टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को देखा हो तो आपको ज्ञात होगा कि भक्त हनुमान ने कैसे कैसे अपने प्रभु श्री राम के दुर्गम कार्यों को बड़ी आसानी से संभव कर दिखाया। भक्त हनुमान ने अपने पराक्रम से बड़े से बड़े राक्षसों का विनाश किया है और इतना ही नहीं भक्त हनुमान ने अपने पराक्रम से अर्जुन , बाली, भीम, शनिदेव जैसे बड़े-बड़े वीरों को युद्ध में पराजित भी किया है और उनका अभिमान चकनाचूर भी किया है। परंतु क्या आपको पता है कि भक्त हनुमान ने अपने जीवन में अभिमान में आकर एक ऐसा युद्ध भी लड़ा है  जिसमें भक्त हनुमान की हार हुई थी। और सिर्फ इतना ही नहीं इस युद्ध में भक्त हनुमान को पराजित करने वाला कोई अन्य व्यक्ति नहीं बल्कि भगवान श्री राम का ही  एक भक्त था। तो आज हम इस लेख में जानेंगे की वह कौन सा भगवान श्री राम का भक्त था जिन्होंने संकट मोचन हनुमान को पराजित कर दिया?





भगवान श्री राम के उस परम भक्त का नाम था मछिंद्रनाथ,जो परम तपस्वी थे। एक समय की बात है जब मछिंद्रनाथ का रामेश्वरम में आगमन हुआ तो वह श्री राम जी का सेतु देखकर अत्यंत भावविभोर  हो गए तथा भगवान श्री राम की भक्ति में लीन होकर रामेश्वरम समुंद्र में स्नान करने लग गए। उसी क्षण वानर  के वेश में मौजूद भक्त हनुमान की दृष्टि मछिंद्रनाथ पर पड़ी।  उन्होंने मछिंद्रनाथ की शक्ति की परीक्षा लेने  का मन बनाया। इसके लिए भक्त हनुमान ने अपनी  लीला रची और भक्त हनुमान ने जोरों की बारिश करा दी। बारिश को होता देख भक्त हनुमान इस बारिश से बचने के लिए एक पहाड़ पर जोर-जोर से प्रहार करने लगे जैसे मानो गुफा बनाने का प्रयास कर रहे हो। लेकिन वास्तव में भक्त हनुमान का यह उद्देश्य था कि मछिंद्रनाथ का ध्यान भंग हो जाए तथा भक्त हनुमान पर उनकी दृष्टि पड़े।  और ऐसा हुआ भी मछिंद्रनाथ ने देखा कि सामने वाले पहाड़ पर एक वानर उसे तोड़कर गुफा बनाने की नाकामयाब कोशिश कर रहा है।  तो मछिंद्रनाथ ने कहा कि “ हे वानर तुम कितने मूर्ख हो यह भी नहीं जानते कि हाथों से इस तरह प्रहार करके पहाड़ में गुफा नहीं बनाई जा सकती और जब प्यास लगी हो तभी कुआ नहीं खोदा जाता इससे तो अच्छा होता कि तुम पहले से ही अपने छुपने का प्रबंध कर लेते “

यह बात सुनकर वानर रूपी भक्त हनुमान ने मछिंद्रनाथ से कहा -” आप कौन हैं ? मैंने पहले कभी आपको यहां नहीं देखा?”  Which war hanuman lost

वानर की यह बात सुनकर भक्त मछिंद्रनाथ ने अपना पूरा परिचय दिया और कहा कि - “मैं एक सिद्ध योगी हूँ  और मुझे भगवान श्री राम की परम कृपा से मंत्र शक्ति प्राप्त है “

 इस बात पर वानर रूपी भक्त हनुमान ने सोचा, क्यों ना इस भक्त की परीक्षा ले ली जाए। मछिंद्रनाथ की परीक्षा लेने के उद्देश्य से हनुमान ने कहा - “हे परम तपस्वी क्या आपको पता है कि इस संपूर्ण सृष्टि में सिर्फ दो ही श्रेष्ठ योद्धा है जिन का मुकाबला कोई नहीं कर सकता ,एक तो है प्रभु श्री राम और दूसरे हैं महाबली हनुमान , परंतु मैंने प्रभु श्री राम की कुछ समय तक सेवा की है जिससे उन्होंने खुश होकर  अपनी शक्ति का 1% भाग मुझे भी वरदान के रूप में दे दिया है। ऐसे में यदि आप परम तपस्वी हैं और प्रभु श्री राम के भक्त हैं तुम मुझे युद्ध में हराकर दिखाइए तभी मैं आपको परम तपस्वी और प्रभु श्री राम का भक्त मानूंगा अन्यथा आप सिर्फ एक ढोंगी है। “

यह सब बात सुनकर मछिंद्रनाथ को बहुत बुरा लगा उन्हें लगा कि जैसे उनकी तपस्या को और प्रभु श्री राम की लीन भक्ति को किसी ने अपमानित किया हो मछिंद्रनाथ ने बिना देर किए वानर की चुनौती को स्वीकार कर लिया और युद्ध प्रारंभ हो गया। वानर के रूप में भक्त हनुमान ने मछिंद्रनाथ पर एक से बढ़कर 7 पहाड़ फेंके परंतु इन पहाड़ों को अपनी तरफ आते देख मछिंद्रनाथ ने अपनी आंखें बंद की और प्रभु श्री राम का नाम लेने लगे। और अपनी मंत्र शक्ति से उनको निष्प्रभावी कर दिया। और वह पहाड़ हवा में एक जगह स्थिर हो गए जिसके बाद मछिंद्रनाथ ने अपनी आंखें खोली और उन पहाड़ों को उनके मूल स्थान पर वापस स्थापित कर दिया।  यह सब देख कर हनुमान जी को अत्यंत क्रोध आया और उन्होंने मछिंद्रनाथ पर वहां के सबसे बड़े पर्वत को उठा लिया और मछिंद्रनाथ पर फेंकने के लिए उठा लिया । इस बार मछिंद्रनाथ ने रामेश्वरम समुंदर की कुछ बूंदें अपने हाथ में ली और बात वाताकर्षण मंत्र से सिद्ध करके उन पानी की बूंदों को वानर रूपी हनुमान पर फेंक दिया।  मछिंद्रनाथ ने जैसे ही पानी की बूंदों को हनुमान पर फेंका वैसे ही हनुमान का शरीर एक जगह स्थिर हो गया। अब हनुमान चाह कर भी कोई हलचल नहीं कर पा रहे थे और उस मंत्र का इतना प्रभाव था कि हनुमान की शक्तियां छिन होने लग गई और जो पर्वत हनुमान ने उठा रखा था उसे उठाने में भी उन्हें बहुत शक्ति का उपयोग करना पड़ा।  हनुमान जी को इस कष्ट में देखकर उनके पिता पवन देव वहां प्रकट हुए तथा मछिंद्रनाथ से प्रार्थना की -” हे परम तपस्वी मछिंद्रनाथ हनुमान जी को क्षमा  कर दो “ 

पवन देव की यह प्रार्थना सुनकर मछिंद्रनाथ में हनुमान जी को अपने मंत्रों से मुक्त किया तथा इसके बाद वानर रूपी भक्त हनुमान अपने वास्तविक रूप में आ गए इसके पश्चात उन्होंने मछिंद्रनाथ से कहा -” हे मछिंद्रनाथ मैं यह भली-भांति जानता था कि आप स्वयं प्रभु नारायण के अवतार हैं। इसके बावजूद मैं  आपकी भक्ति और शक्ति की परीक्षा लेने का दुस्साहस कर बैठा , मेरी आपसे प्रार्थना है कि मेरी इस भूल को क्षमा करें “ मछिंद्रनाथ ने अपनी  दयालुता दिखाते हुए हनुमान जी को क्षमा कर दिया और इस प्रकार हनुमान श्री राम के ही भक्त से हार गए। 

 तो इस प्रकार हनुमान जी अनजाने में ही सही परन्तु अभिमान में आ कर और सामने वाले को तुच्छ समझ कर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसलिए हमे हमेशा स्मरण रखना चाहिए की कोई किसी से तुच्छ नहीं है। 

आपको ये लेख कैसा लगा हमे कमेंट में बताएं और इसे अपने मित्रों एवं परिवारजनों के साथ भी साँझा करें। 

धन्यवाद !

जय श्री राम 

Search Preferences Covered -

Which war hanuman lost    

Why hanuman lost war


ये करने से व्रत का फल कभी नहीं मिलेगा

 हिंदुस्तान त्योहारों का देश है। यहां वह संस्कृति और संस्कार पाए जाते हैं जो पूरी दुनिया में कहीं नहीं पाए जाते।  व्रत को हम लोग भारतीय दर्शन का अभिन्न अंग मानते है। हिंदुस्तान में लगभग प्रत्येक जाति और धर्म के लोग किसी न किसी रूप में उपवास अथवा व्रत रखते हैं। चाहे वह कार्तिक व्रत हो ,एकादशी व्रत ,अमावस्या व्रत ,सत्यनारायण ,व्रत नवरात्रि व्रत ,पूर्णमासी व्रत ,तीज व्रत ,करवा चौथ का व्रत , अहोई अष्टमी का व्रत हो। इसके साथ ही कुछ ऐसे व्रत हैं जिन्हें घर की सुख शांति के लिए और पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है जैसे कि करवा चौथ का व्रत वट सावित्री व्रत का व्रत। इन्हे  हिंदुस्तान की प्रत्येक हिंदू स्त्रियां रखती हैं। ऐसा नहीं है कि व्रत रखने की परंपरा सिर्फ हिंदू धर्म में ही हो व्रत रखने की परंपरा जैन धर्म, बौद्ध धर्म ,मुस्लिम धर्म आदि में रखने की प्राचीन काल से चली आ रही है और यह आज भी सुचारू रूप से चल रही है।

    प्रत्येक धर्म में व्रत से जुड़े हुए अपने नियम होते हैं रीति रिवाज होते हैं और उनकी मान्यताएं होती हैं। जो एक दूसरे धर्म से भिन्न-भिन्न होती है। इन्हीं नियमों का पालन करते हुए अपने अपने  धर्म के लोग व्रत रखते हैं। इन्हीं नियम और रिवाजों को श्रद्धा पूर्वक करने से व्रत का फल भी अच्छा मिलता है। यदि व्रत से जुड़े हुए नियम एवं रिवाजों को सही ढंग से ना अपनाया जाए तो व्रत का कोई फल प्राप्त नहीं होता है। कुछ लोग व्रत इसलिए भी रखते हैं ताकि उनके कुछ सपने पूरे हो सकें या उनकी कोई मन की मुराद पूरी हो सके।  ऐसे व्रत रखने के लिए ईश्वर से जुड़े व्रत रखने चाहिए। लेकिन कभी-कभी यह भी देखा जाता है की व्यक्ति पूरी तरह से नियमों और रिवाजों का पालन करता है फिर भी उसको व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है। उस वक्त मानो व्यक्ति का मनोबल ही टूट जाता है और कभी-कभी ऐसा भी होता है कि व्यक्ति का पूजा पाठ कर्म कांडों से विश्वास तक उठ जाता है। हम यह कह सकते हैं कि कई बार हम सही भी होते हैं परंतु हमें इस बात को भी स्वीकार करना चाहिए कि व्रत करते समय हम कुछ ऐसी गलतियां कर देते हैं जो हमें नहीं करनी चाहिए, चाहे वह गलतियां अनजाने में ही क्यों ना हो ,और इसका निष्कर्ष यह होता है कि हमें व्रत का फल प्राप्त नहीं होता। हम कई बार ऐसा भी करते हैं कि इन्हीं गलतियों को दोहराते चले जाते हैं और ईश्वर को और व्रत को गलत साबित करने लग जाते हैं।  आज इस लेख में हम आपको कुछ ऐसी गलतियों के बारे में बताएंगे जो शायद आप करते चले आ रहे हो अथवा या अनजाने में कर दी हो। इसलिए लेख को पूरा पढ़ें और विचार करें क्या आप अब तक यह गलतियां कर रहे थे अथवा नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इन्हीं गलतियों की वजह से आपको व्रत का फल प्राप्त ना हो रहा हो। इसलिए इस लेख को पढ़ने के बाद आपको जो गलतियां महसूस हो उसे आप व्रत में ना दोहराएं।  चलिए तो लेख को आगे बढ़ाते हैं-

    • Karwachoth vrat me chand ko jal deti do striyan



    यह है वह गलतियां जो शायद आप व्रत रखने में कर रहे हो। जिसके कारण आप को व्रत का फल प्राप्त ना हो पाता हो :-

    • सबसे पहले तो आपको यह जान लेना चाहिए की सनातन ( हिंदू ) धर्म में सुबह 4:00 बजे ब्रह्म मुहूर्त आरंभ हो जाता है। इसी ब्रह्म मुहूर्त के साथ शुरुआत हो जाती है आपके व्रत की। इस बात का विशेष कर ध्यान रखें कि सुबह 4:00 बजे से पूर्व आपको जो कुछ भी खाना पीना हो वह खा पी ले परंतु 4:00 बजे के बाद आप कुछ भी ना खाएं ना पिए। क्योंकि 4:00 बजे के बाद से आपका व्रत शुरू हो जाता है। यदि आप ऐसे समय में कुछ खाते पीते हैं तो वह व्रत निष्क्रिय हो जाएगा और आपको इसका कोई फल प्राप्त नहीं होगा। उल्टा आपको व्रत तोड़ने का पाप लग जाएगा इसलिए समय का विशेष ध्यान रखें। 
    • इसके बाद बात करते हैं व्रत के समापन की - देखिए व्रत के समापन के अपने कुछ नियम कायदे होते हैं जैसे उदाहरण के रूप में कुछ व्रत सूरज को देख कर पूर्ण किए जाते हैं तो कुछ व्रत चांद एवं तारों को जल अर्पित करके तथा उनको भोग लगाकर पूर्ण किए जाते हैं। परंतु अज्ञानतावश हम इन नियमों का ठीक से अनुसरण नहीं कर पाते हैं और भूल जाते हैं कि हमको व्रत को पूर्ण करने के लिए किसको जल अर्पित करना है और किसके हमें दर्शन करने हैं। ज्यादातर शाम के समय में बिना चांद, तारों और सूर्य को  जल अर्पित किए बिना भोग लगाए खुद ही व्रत तोड़ लेते हैं और हमें यह लगता है कि हमारा व्रत पूर्ण हो गया।  जबकि सही मायने में हमारा व्रत खंडित हो चुका है। जिसका परिणाम यह होता है कि हम को व्रत रखने का कोई फल प्राप्त नहीं होता। इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप जो व्रत रख रहे हैं वह किस तरह से पूर्ण होगा ? किस को भोग लगाना है ? किस को जल अर्पित करना है ? और किस के दर्शन करने हैं ? इन बातों का विशेषतः ध्यान रखें।  Vrat kaise Kare , Vrat kaise kiya jata hai
    • अब बात करते हैं व्रत में खाने पीने की - अक्सर स्त्रियों के मन में यह विचार आता है कि व्रत तो रख लिया परंतु क्या व्रत में हम कुछ खा पी सकते हैं ? तो देखिए यह निर्भर करता है कि आपने किस  तरह का व्रत रखा है।  क्योंकि कुछ व्रत ऐसे होते हैं जिनमें फलाहार लिया जा सकता है तो किसी व्रत में रोजाना की तरह साधारण खाना खा सकते हैं।  कुछ व्रत ऐसे होते हैं जिनमें सिर्फ सेंधा नमक ही प्रयोग किया जाता है तो किसी में सिर्फ मीठा भोजन ही करते हैं। कुछ-कुछ व्रत ऐसे होते हैं जिनमें सिर्फ एक समय ही खाना पड़ता है।  कुछ व्रत ऐसे हैं जिनमें कुट्टू के आटे की बनी पकौड़ी या कोई अन्य चीज जोकि कुट्टू के आटे से बनी हो खा सकते हैं। कुछ में सिर्फ एक बार ही भोजन ग्रहण करते हैं।  तो कहने का मतलब यह है कि सभी व्रत में  अपने अपने नियम है कि उनमें क्या खाया जाए और क्या ना खाया जाए। परंतु इन सभी व्रत में एक साधारण सी बात यह है कि किसी भी व्रत में मांसाहार , प्याज , लहसुन , चावल खाना शराब का सेवन करना , या अन्य किसी भी तरह की नशीली चीजों का सेवन करना पूर्ण रूप से वर्जित होता है। क्योंकि सनातन धर्म में व्रत के भोजन का अर्थ होता है शुद्ध और साधारण भोजन करना। इसलिए आप वही भोजन करें जो उस व्रत में लागू होता हो। इसके लिए आप अपने घर की बुजुर्ग स्त्रियों से परामर्श कर सकती हैं अथवा अपने शहर के किसी उच्च पंडित अथवा किसी मंदिर के ज्ञानी व्यक्ति से बात कर सकती हैं। उनके द्वारा सुझाए गए भोजन के अनुसार ही आप व्रत में भोजन ग्रहण करें जिससे कि आपको व्रत का पूरा फल प्राप्त हो और आपकी मनोकामना पूरी हो। 

    तो अब बात करते हैं तीसरी गलती की जो आप ऊपर बताई गलतियों के अलावा कर सकते है।  हमने आपको सबसे पहले वाले बिंदु में ब्रह्म मुहूर्त के बारे में बताया था। लेकिन ब्रह्म मुहूर्त का ध्यान रखते हुए भी हम सुबह-सुबह ऐसी गलती कर देते हैं जोकि व्रत को उसी वक्त खंडित कर देती है। 

    • देखिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठने के बाद हम दातुन करते हैं यानी पेस्ट करते हैं। पुराने समय में दातुन नीम की, बबूल की और कुछ ना मिले तो कोयले की या फिर राख की किया करते थे जो  पूरी तरह से शुद्ध होती थी। इनसे  दांतो की सफाई भी एकदम चकाचक होती थी। इनमे  व्रत तोड़ने वाली खाद्य सामग्री यानी कि नमक नहीं होता था। लेकिन आज हम जो पेस्ट करते हैं क्या वह शुद्ध होता है? एक शोध के अनुसार आजकल हम जो पेस्ट करते हैं उसमें नमक , फास्फोरस और कैल्शियम होता है। कंपनी इनका उपयोग इसलिए करती हैं जिससे कि हमारे दांतो को मजबूती मिले।  लेकिन कभी आपने यह सोचा है कि यह फास्फोरस और कैल्शियम आखिर आता कहां से है ? तो शोध यह बताते हैं और कुछ अखबारों की सुर्खियां भी यह बताती हैं कि यह जो फास्फोरस और कैल्शियम होता है वह दरअसल हड्डियों का चूरा होता है ,जोकि गाय ,भैंस ,सूअर ,बकरा ,बकरी आदि जानवरों की हड्डियों को पीसकर टेस्ट में मिला दिया जाता है।  इससे होता यह है की पेस्ट लचीला हो जाता है और वह दांतों को मजबूती देने लायक भी हो जाता है।  हालांकि इस पेस्ट का उपयोग आप अन्य दिनों में कर सकते हैं परंतु आप यदि व्रत में ऐसे पेस्ट का उपयोग करते हैं तो यकीनन आप का व्रत उसी वक्त खंडित होगा ही होगा। क्योंकि व्रत में नमक और हड्डियों का चूरा आप इस्तेमाल करेंगे तो क्या लगता है आपको, आपका व्रत सफल होगा ? कदापि नहीं। क्योंकि व्रत मैं ऐसी चीजों का उपयोग करना पूरी तरह से वर्जित है।  अब सवाल यह उठता है की क्या हम व्रत वाले दिन पेस्ट भी ना करें ? तो इसका जवाब है कि कर सकते हैं।

    इसके लिए आप 2 नियम का पालन कर सकते हैं। पहला तो यह कि आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त से पहले ही पेस्ट कर ले यानी कि 4:00 बजे से पहले ही पेस्ट कर ले।  दूसरा यह की यदि आपको ब्रह्म मुहूर्त के बाद पेस्ट करना ही है तो आप नीम, बबूल या यह भी ना मिले तो कोयले अथवा राख से दांतो को साफ कर लें।  इन दोनों नियमों में आपको जो ठीक लगे वह प्रयोग कर सकते हैं। इससे आपके दातों की सफाई भी हो जाएगी और आपका व्रत भी खंडित नहीं होगा। अब ये आप पर निर्भर करता है कि आपको कौन सा नियम अच्छा लगता है। 

    • अब बात करते हैं व्रत के दिन साफ सफाई की - व्रत वाले दिन स्नान करने के बाद इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप जो वस्त्र पहनने जा रहे हैं वह गंदे ना हो फटे हुए ना हो बहुत पुराने ना हो। क्योंकि यह व्रत के फल को खंडित करते हैं। इसलिए यह ध्यान रखें कि व्रत वाले दिन नहा धोकर साफ-सुथरे और बिना फटे हुए कपड़े ही पहने।  यह भी ध्यान दें कि आप के कपड़ों का रंग नीला, काला, भूरा  ना हो बल्कि लाल, गुलाबी, हरा, पीला होना चाहिए क्योंकि इन रंगों को शुभ रंग माना जाता है। ये रंग  इंसान को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसलिए व्रत वाले दिन इन रंगों के वस्त्रों का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए।
    • अब बात करते हैं व्रत वाले दिन पूजा पाठ की - व्रत वाले दिन आपको पूजा जरूर करनी चाहिए और हो सके तो वह पूजा जरूर करें जो आपके व्रत से जुड़ी हुई हो।  इसके साथ ही आप मन को शांति देने वाले मंत्र , पाठ अथवा जाप कर सकते हैं।  क्योंकि ऐसी धार्मिक गतिविधियां करने से व्रत का फल ज्यादा मिलता है। साथ ही इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आप जो भी पूजा पाठ करें वह पूरे मन से हो और आपके परिवार के लोगों के अलावा किसी और की नजर में ना हो। क्योंकि बाहर के लोग नकारात्मक नज़र या हाय लगा सकते हैं। जिसके कारण व्रत का फल पूरी तरह से नहीं मिलता और हमारा मन पूजा-पाठ और व्रत से हट जाता है और हमको धार्मिक चीजों से चिड आने लगती है।  इसलिए आप जो भी पूजा पाठ करें उसे दिखा कर ना करें बल्कि अपने शुद्ध हृदय से और पूरे मन से करें जो सिर्फ आपके और आपके इष्ट देव के बीच ही हो। 
    • व्रत वाले दिन आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप व्रत में हैं और आप व्रत वाले दिन गाली गलौज नहीं करेंगे , झूठ नहीं बोलेंगे, किसी के साथ मारपीट नहीं करेंगे , किसी की बुराई नहीं करेंगे , और कोई भी ऐसा काम नहीं करेंगे जो नीति विरुद्ध हो।  यदि आप इसका पालन करते हैं तो आपको व्रत का फल जरूर मिलेगा। 

    यह थी वह बातें जो एक व्रत धारी को विशेष रुप से ध्यान में रखनी चाहिए, और नियमों का पालन करना चाहिए। वैसे कहने को तो यह बहुत साधारण सी बातें हैं परंतु यह वह नियम और बातें हैं जिन्हें हम जाने अनजाने में भुला देते हैं। यह नियम और बातें सिर्फ हिंदू धर्म पर ही लागू नहीं होती बल्कि यह सभी धर्मों पर लागू होती है।  यदि आप इन नियमों का पालन करते हैं तो आप देखेंगे कि आपकी पूजा पाठ और व्रत की ऊर्जा बहुत बढ़ गई है। इसलिए आज से ही आप इन नियम और बातों का पालन करें और व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करें।  

    इस लेख के माध्यम से हमने एक छोटी सी कोशिश की है आपको कुछ साधारण सी गलतियां बताने की। क्योंकि आप पूरे मन से व्रत रखते हैं और जब आपको उस व्रत का फल नहीं मिलता है तो मन खिन्न हो जाता है परंतु आज से सभी नियम और बातों का ध्यान रखे। 

    धन्यवाद ! Vrat kaise Kare , Vrat kaise kiya jata hai

    जय श्री कृष्णा।।

    आपको हमारा ये लेख कैसा लगा इसके बारे में निचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसे अपने मित्रों एवं परिवारजनों के साथ भी साँझा करें।

    Search Preferences Covered : Vrat kaise Kare , Vrat kaise kiya jata hai

    इस मंदिर का 3000 बम भी कुछ नहीं बिगड़ सके

     आज हम जिस मंदिर के बारे में बात करेंगे उस मंदिर का सबसे पहले इतिहास जान लेते हैं।

    बहुत समय पहले की बात है। मामडि़या नाम के एक चारण हुआ करते थे। वह निसंतान थे उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए हिंगलाज शक्तिपीठ के लगभग 7 बार पैदल ही यात्रा की थी। उनकी अटूट भक्ति और संतान प्राप्ति की लालसा को देखते हुए एक बार माता रानी ने उन्हें स्वप्न दिया। स्वप्न में उनसे कहा की जो तुम्हें चाहिए वह मुझसे मांग सकते हो। इस पर चारण ने माता रानी से कहा कि मेरी इच्छा है कि आप मेरे यहां एक कन्या के रूप में जन्म लें।

    माता रानी की ऐसी कृपा हुई कि चारण के यहां पर 1 पुत्र और सात कन्याओं ने जन्म लिया। उनमें से एक कन्या आवड़ थी जिसने विक्रम संवत 808 में मामडि़या के यहां जन्म लिया था। आवड ने जन्म लेने के पश्चात तरह-तरह के चमत्कार दिखाना प्रारंभ कर दिया। चारण की सातों कन्याएं दिव्य शक्तियों से युक्त थीं। इन सातों कन्याओं ने उस समय हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की सुरक्षा की थी और किसी भी निवासी का बाल भी बांका नहीं होने दिया था। कुछ समय के बाद आवड़ माता की ऐसी कृपा हुई की माड़ प्रदेश में भाटी राजपूतों का सुशासन राज्य स्थापित हुआ। उस समय के राजा तनुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। आवड़ माता को उन्होंने सोने का सिंहासन भी भेंट किया। कहा जाता है की आवड़ माता ने विक्रम संवत 828 ईस्वी में अपने भौतिक शरीर के रहते हुए ही अपनी स्थापना की थी।

    यह तो बात हुई आवड़ माता के मंदिर के इतिहास की अब बात करते हैं उस ऐतिहासिक चमत्कार की जिसने इस मंदिर को और भी ज्यादा प्रचलित कर दिया। Tanot mata mandir


    Image Credit - www.google.com

    आवड़ माता को तनोट माता के नाम से भी जाना जाता है और तनोट माता का मंदिर राजस्थान के जैसलमेर से लगभग १३० किलोमीटर दूर भारत तथा पाकिस्तान की सीमा के निकट तनोट में स्थित है। 1200 साल पुराना यह मंदिर सदैव से ही आस्था का केंद्र बना रहा है परंतु सन 1965 की भारत तथा पाकिस्तान की जंग के बाद इस मंदिर को देश विदेश में और भी ख्याति प्राप्त हो गई। साल 1965 की जंग में पाकिस्तान की सेना ने इस मंदिर पर लगभग 3000 बंब फेंके थे परंतु इस मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ था। कहा यह भी जाता है कि लगभग 450 बम इस मंदिर के परिसर में फेंके गए थे जो फटे भी नहीं थे। इन बम्बों को वर्तमान समय में मंदिर के संग्रहालय में आमजन के दर्शन के लिए रख दिया गया है।


    Image Credit - www.google.com

    आवड़ माता या यह कहें तनोट माता हिंगलाज माता का ही स्वरूप है। हिंगलाज माता का शक्तिपीठ बलूचिस्तान में पड़ता है जोकि पाकिस्तान में है। यहां हर वर्ष चैत्र तथा अश्विन के नवरात्रों में विशाल मेले का आयोजन होता है।

    साल 1965 में हुई जंग के बाद सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ ने तनोट माता के मंदिर का जिम्मा अपने हाथों में ले लिया, तथा यहां पर चौकी का निर्माण कर लिया। तनोट माता के पास ही एक जगह है लोंगेवाला , जहां पर 4 दिसंबर सन 1971 की रात को सीमा सुरक्षा बल तथा पंजाब रेजीमेंट कि कंपनी ने माता रानी की कृपा से लोंगेवाला में पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजीमेंट को दांतो तले लोहे के चने चबबा दिए थे। और उस जगह को पाकिस्तानी टैंकों के कब्रिस्तान के रूप में बदल दिया था।


    Image Credit - www.google.com

     इस जंग की विजय के पश्चात मंदिर के परिसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण कराया गया है। जहां पर प्रत्येक वर्ष 16 दिसंबर को उन सैनिकों की याद में उत्सव का आयोजन कराया जाता है। तनोट माता के मंदिर पर पिछले कई सालों से तैनात काली कांत सिन्हा जो कि कॉन्स्टेबल है वह अपना अनुभव बयान करते हैं और कहते हैं कि माता रानी बहुत बलशाली हैं और मेरी प्रत्येक मनोकामना को पूरा किया है। आज मेरा परिवार जो कुछ भी है माता रानी की कृपा से ही है। हमारे सिर पर तनोट माता का आशीर्वाद सदैव बना रहता है और माता रानी के होते हुए हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता ।

    तो ये था तनोट माता के मंदिर का चमत्कारिक किस्सा जो आप ने जाना। कभी जैसलमेर जाना हो तो तनोट माता के दर्शन जरूर करके आएं।

    धन्यवाद !

    तनोट माता की जय।

    आपको हमारा ये लेख कैसा लगा इसके बारे में निचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसे अपने मित्रों एवं परिवारजनों के साथ भी साँझा करें।

    Search Preferences Coverd : Tanot mata mandir , Miracle of Tanot mata Temple


    स्वर्ग का राजा क्यों बना अजगर ?

      इस कहानी का वर्णन श्रीमद्भागवत के साथ ही महाभारत में भी देखने को मिलता है। यह बात उस समय की है जब मनु की चौथी या पांचवी पीढ़ी थी और स्वर्ग में राज कर रहे थे राजा इंद्र, राजा इंद्र ने दुर्वासा ऋषि का घोर अपमान किया था जिसके कारण दुर्वासा ऋषि ने राजा इंद्र को श्राप दिया था। और श्राप ये दिए था कि राजा इंद्र जिस बल पर इतना गुमान करते हैं वह बल राजा इंद्र से छिन जाएगा और राजा इंद्र बलहीन हो जाएंगे। श्राप के कारण राजा इंद्र बलहीन हो गए और इसका फायदा दैत्य उठाना चाह रहे थे तो उन्होंने देखा कि अब तू राजा इंद्र बल हिना हो गए हैं क्यों ना अब स्वर्ग पर आक्रमण करके उस पर राज किया जाए। इसके बाद दैत्यों ने स्वर्ग में उत्पात मचाना आरंभ कर दिया। यह सब देखकर राजा इंद्र कहीं छुप गए ऐसा होने से दैत्यों के अंदर और साहस आ गया और देखते ही देखते स्वर्ग पर हमले होना आरंभ हो गए।





    स्वर्ग के बाकी देवताओं ने सप्त ऋषियों से मंत्रणा की और यह हल निकाला गया कि उस समय के सबसे प्रभावशाली और तेजस्वी राजा नहुष को स्वर्ग का राजा बना देना है ही उचित होगा। इस प्रकार से नहुष को स्वर्ग का राजा बना दिया गया नहुष बहुत प्रतापी और योद्धा राजा थे उनका ऐसा प्रभाव हुआ कि दैत्यों ने उत्पात मचाना बंद कर दिया। देखते देखते सारे दैत्य एकदम शांत हो गए। इस प्रकार स्वर्ग में चारों तरफ शांति का वातावरण हो गया परंतु राजा नहुष पर अपनी शक्ति और स्वर्ग का सिंहासन मिलने का घमंड सवार हो गया।

    अब राजा नहुष अपनी मनमानी करने लगे राजा नहुष इस कदर मद में चूर हो गए कि उन्होंने राजा इंद्र की धर्मपत्नी शचि को अपने सामने पेश होने का आदेश दिया। राजा नहुष ने देवराज इंद्र की पत्नी शचि को यह भी कहा कि अब स्वर्ग का राजा मैं हूं और मेरे पास बहुत सारी शक्तियां हैं और मैं बहुत बलशाली हूं। तुम मुझे अपना पति मान लो मैं तुम्हें बहुत खुश रखूंगा। राजा नहुष की यह बातें सुनकर सचिव को बहुत क्रोध आया परंतु वह कुछ कर ना सकीं और रानी शचि ने राजा नहुष का प्रस्ताव ठुकरा दिया। इसके बाद राजा नहुष ने शचि को परेशान करना आरंभ कर दिया। जब राजा नहुष ने परेशान करने की सीमाएं लांग दी तो शचि देव गुरु बृहस्पति के पास अपनी समस्याएं लेकर पहुंच गई और उनको सारी बातों से अवगत कराया। राजा नहुष की इन हरकतों से सभी ऋषि मुनि बहुत परेशान रहते थे।

    Raja Nahush ki katha


    देव गुरु बृहस्पति ने शचि को एक उपाय बताया , देव गुरु बृहस्पति ने शचि से कहा की देवी तुम राजा नहुष का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लो तथा राजा नहुष से यह कहो कि वह सप्त ऋषियों को कहार बनाकर स्वयं उनकी डोली में बैठ कर आए तो तुम उसको अपने पति के रूप में स्वीकार कर लोगी। बृहस्पति गुरु का यह सुझाव शचि ने स्वीकार कर लिया और रानी शचि ने यह प्रस्ताव राजा नहुष को भिजवा दिया। रानी शचि का यह प्रस्ताव सुनकर राजा नहुष बहुत खुश हुए तथा राजा नहुष ने सप्त ऋषियों को उनकी डोली उठाने का आदेश सुना दिया।

    सप्त ऋषियों को राजा नहुष का यह आदेश मानना पड़ा और सप्त ऋषियों ने डोली उठाने के लिए हामी भर दी। सप्त ऋषि बहुत वृद्ध थे जिसके कारण वह तेज तेज नहीं चल सकते थे। राजा नहुष ने डोली उठाकर सबसे आगे चल रहे अगस्त ऋषि को पीछे से एक जोरदार लात मारी और तेज तेज चलने के लिए कहा। राजा नहुष के इस अपमान से सभी का सब्र का बांध टूट गया और सप्त ऋषियों ने क्रोध में आकर डोली को गिरा दिया। फिर सप्त ऋषियों ने राजा नहुष को तत्काल अजगर बन जाने का श्राप दे दिया। श्राप देते ही राजा नहुष अजगर बनकर धरती पर जा गिरा और उसको अपनी गलतियों का एहसास होने लगा। स्वर्ग का राजा होने के कारण उनमें अहंकार और अपमान करने की प्रवृत्ति जागृत हो गई थी जिसके कारण उन्हें अजगर बनना पड़ा। कहते हैं कि राजा नहुष का उद्धार हजारों सालों के बाद पांडवों ने किया था।

    Raja nahush ki katha


    इसीलिए कहते है की हमे कभी भी दुसरो की मजबूरी का फायदा नहीं उठाना चाहिए और न ही कभी अभिमान करना चाहिए।
    आपको ये पौराणिक कहानी कैसी लगी हमे कमेंट जरूर करें। और हो सके तो दूसरों के साथ साँझा करें।

    धन्यवाद !

    search preferences coverd :

    Raja Nahush ki Kahani

    Nahush kyu bne ajgar

    एकादशी वाले दिन चावल क्यों ना खाये ?

     


      हम ने अक्सर सुना होता है की लोग कहते है की एकादशी के दिन चावल मत खाओ या एकादशी वाले दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।  लेकिन लोग ऐसा कहते क्यों  है ? इसके पीछे आखिर वजह क्या है ? क्या आपने सोचा है ? इस लेख में आज यही जानेंगे की आखिर एकादशी को चावल क्यों नहीं खाने चाहिए।  

    दरअसल इसके पीछे दो मुख्य दृष्टि कोण है - १ - धार्मिक दृष्टि कोण २- वैज्ञानिक दृष्टि कोण   




    ekadashi wale din


    सबसे पहले बात करते हैं धार्मिक दृस्टि कोण की
     -

     धार्म‌िक दृष्ट‌ि कोण से पुराणों में ये उल्लेख मिलता है की  एकादशी वाले दिन चावल खाने से बिष्ठा ,गंदगी (अखाद्य पदार्थ)  खाने का फल प्राप्त होता है। एक  पौराणिक कथानुसार महर्षि मेधा ने देवी शक्ति के क्रोध से बचने हेतु अपने शरीर का त्याग कर दिया था तथा उनका शरीर अंश पृथ्वी में समाहित हो गया था । इसके बाद वहां महर्षि मेधा चावल और जौ के रूप में उत्पन्न हुई  इसलिए चावल तथा जौ को जीव माना मन गया  है। ये घटना (महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाने की ) उस दिन हुई जिस दिन एकादशी थी । इसी कारणवश  एकादशी के दिन चावल खाना पूरी तरह से वर्जित माना जाता है । साथ ही ये भी मान्यता है कि एकादशी वाले  दिन चावल खाना ठीक वैसा ही है जैसे मनो आप महर्षि मेधा के मांस तथा खून  का सेवन कर रहे हो । 

    अब बात करते है दूसरे दृस्टि कोण की जो है - 

    वैज्ञानिक दृस्टि कोण  वैज्ञानिक दृष्टि  कोण ये कहता है की  चावल के अंदर जल तत्व की मात्रा सर्वाधिक होती है और चन्द्रमा पर जल का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है। इसलिए एकादशी वाले दिन चावल खाने से शरीर के अंदर जल की मात्रा बढ़ जाती है और इसका दुष्परिणाम ये होता है की इससे  हमारा मन विचलित होने लगता है और चंचल भी हो जाता है। यदि मन चंचल हो जायेगा तो एकादशी के व्रत का पालन कैसे होगा क्युकी इससे तो बाधाएं खड़ी हो जाएगी । एकादशी के व्रत में जब तक मन निग्रह व सात्विक नहीं होगा तब तक एकादशी के व्रत का फल कैसे मिलेगा। तो बस  इसलिए एकादशी वाले  दिन चावल से बनी कोई चीज खाना पूरी तरह से मना होता है । 

    तो आज आपने ये जाना की - एकादशी को चावल क्यों नहीं खाना चाहिए ? इसका धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि कोण क्या है ? एकादशी को चावल खाने से क्या फल मिलेगा ? यदि आपको ये बात पहले पता नहीं थी तो आज से दृढ़ निश्चय करले की आप अब कभी भी एकादशी वाले दिन चावल या चावल से बनी किसी भी चीज़ का इस्तेमाल हरगिज़ नहीं करेंगे।  तो अब जोर से बोलिये " हरे कृष्ण हरे कृष्ण ,कृष्ण कृष्ण हरे हरे - हरे राम हरे राम ,राम राम हरे हरे " 

    धन्यवाद ! 

    (यदि आपको हमारा ये लेख पसंद आया हो तो आप इसको अपने मित्रों एवं परिवारजनों के साथ साँझा कर सकते हैं)

    Ekadashi ko chaval kyu nhi khane chahiye? 

    Ekadashi ko chaval kyu na khay?

    शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाते हैं ?

       शिवलिंग को भगवान् शिव का निराकार स्वरूप माना जाता है।  शिवलिंग पर शहद दही जल दूध भी इत्यादि अर्पित किया जाता है।  मुख्य रूप से इसके दो कारण है पहला तो कारण वैज्ञानिक है और दूसरा कारण धार्मिक है, तो आज हम चर्चा करेंगे की  शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है ? 

    shivling par dudh kyu chadaye




    शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाते हैं ? Shivling par dudh kyu chadhate hain ?



    सबसे पहले बात करते हैं धार्मिक कारण की -


    पौराणिक कथानुसार जब देवताओं और दैत्यों के द्वारा समुंद्र मंथन किया जा रहा था तब उसमें से सर्वप्रथम विष अर्थात जहर उत्पन्न हुआ था। इस विष का ताप इतना तीव्र था कि इससे संपूर्ण सृष्टि का विनाश संभव था और इससे संपूर्ण सृष्टि खतरे में पड़ सकती थी। इस विपत्ति से पार पाने के लिए देवता और दैत्य ने भगवान शिव को याद किया क्योंकि एकमात्र भगवान शिव ही इस जहर के ताप और तीव्रता से संपूर्ण सृष्टि को बचा सकते थे और एकमात्र भगवान शिव ही इस विष  के ताप और तीव्रता को सहन कर सकते थे। जब भगवान शिव ने देवता एवं दैत्यों कि यह प्रार्थना सुनी तो उन्होंने उस जहर को अपने कंठ में धारण कर लिया और संपूर्ण सृष्टि को विनाश के मुख में जाने से बचा लिया। इस विष अर्थात जहर का ताप इतना ज्यादा था की भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया (इसी कारण भगवान शिव का दूसरा नाम नीलकंठ पड़ा) और उनके शरीर का तापमान भी बहुत बढ़ गया जिसके कारण शरीर जलने लगा। इस विष का ताप इतना घातक था की भगवान शिव की जटाओं में विराजमान देवी गंगा पर इसका प्रभाव पड़ने लगा। देवी गंगा ने अपने शीतल जल से भगवान शिव का अभिषेक किया परंतु गंगाजल से भी भगवान शिव के शरीर का ताप कम नहीं हुआ तो सभी देवताओं ने यह निश्चय किया कि भगवान शिव का जलाभिषेक होना चाहिए और भगवान शिव को दूध भी ग्रहण करना चाहिए ताकि इससे जहर का प्रभाव कम हो जाए। सभी देवताओं के कहने पर भगवान शिव ने दूध को ग्रहण किया और दूध से ही भगवान शिव का अभिषेक किया गया तब से ही भगवान शिव पर दूध एवं जल से अभिषेक करने की परंपरा प्रारंभ हुई और कहा जाता है कि भगवान शिव को दूध अत्यंत प्रिय है तथा यह भी मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव का दूध से अभिषेक करने पर मनुष्य की सारी महत्वकांक्षाएं पूरी हो जाती है।  तो यह था भगवान शिव को दूध एवं जल चढ़ाने का धार्मिक महत्व।




    neelkanth



    अब बात करते हैं वैज्ञानिक कारण की


    वैज्ञानिकों का मत है की एक विशेष प्रकार के पत्थर से शिवलिंग बनाया जाता है और इस पत्थर का अर्थात शिवलिंग का क्षरण अर्थात टूटन ना हो इसके लिए जरूरी है कि इस पर घी शहद दूध जैसे चिकने तथा ठंडी तासीर वाले पदार्थ इस पर चढ़ाए जाने चाहिए। 


    यदि शिवलिंग पर दूध दही घी जैसे तैलीय पदार्थ ना चढ़ाये  जाएं तो शिवलिंग समय के साथ साथ भंगुर होकर टूट जाएगा।  अगर शिवलिंग को हजारों वर्षों तक बनाए रखना है तो जरूरी है कि इसको हमेशा गीला रखा जाए तथा इस पर तेल एवं वसा युक्त पदार्थ चढ़ाई जाएं। शिवलिंग जिस पत्थर से बना होता है उसकी प्रकृति कुछ ऐसी होती है कि वह पदार्थों को अपने और अवशोषित कर लेता है जिसके कारण उस पत्थर की उम्र बहुत बढ़ जाती है। 


    यह भी एक अद्भुत वैज्ञानिक दृष्टिकोण है की शिवलिंग पर उचित मात्रा में और एक खास समय में ही दूध दही घी आदि चढ़ाया जाता है।  वैज्ञानिकों का मानना है यदि शिवलिंग पर बहुत ज्यादा मात्रा में दूध दही घी चढ़ाया जाए और हाथों से रगड़ा जाए तो यह शिवलिंग बहुत जल्दी क्षरण हो जाएगा और टूट सकता है।  परंतु भक्त ऐसा नहीं करते हैं और खासकर शिवलिंग पर सोमवार और सावन के महीने में हैं अभिषेक किया जाता है। 

    तो आज आपने जाना की शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है अगर आपको हमारा यह लेख पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों और परिवार जनों के साथ सांझा करें।


    धन्यवाद !

    जय भोले भंडारी


    शंका समाधान -

    Shivling par dudh kyu chadate hai

    Shivling par dudh kyu chadaye

    सौंदर्य

    featured, Nature, Health, Fitness
    © All Rights Reserved
    Made with by ArYan