भगवान श्री राम के परम भक्तों में सबसे उच्चतम नाम निसंकोच भक्त हनुमान का आता है। भक्त हनुमान को वीरो का वीर महावीर कहकर बुलाया जाता है। भक्त हनुमान ने अपने प्रभु श्री राम की रक्षा के लिए उनकी सेवा में अनेकों युद्ध किए और उनको जीता भी। शास्त्रों में उन्हें संकट मोचन कहकर बुलाया जाता है क्युकी भक्त हनुमान अपने भक्तों को प्रत्येक संकट से निकालते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। महर्षि बाल्मीकि ने अपने महाकाव्य रामायण में प्रभु श्री राम तथा भक्त हनुमान के कार्यों का बहुत ही सुंदर और मनोहर उल्लेख किया है। जब आप रामायण का श्रवण करते हैं तो आपको ज्ञात होता है की भक्त हनुमान ने अपनी निस्वार्थ भक्ति से भगवान श्री राम के मन मंदिर में अपना मुख्य स्थान ग्रहण किया है और प्रभु श्री राम के सबसे प्रिय भक्त बने है। यदि आपने रामायण का श्रवण किया हो या टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को देखा हो तो आपको ज्ञात होगा कि भक्त हनुमान ने कैसे कैसे अपने प्रभु श्री राम के दुर्गम कार्यों को बड़ी आसानी से संभव कर दिखाया। भक्त हनुमान ने अपने पराक्रम से बड़े से बड़े राक्षसों का विनाश किया है और इतना ही नहीं भक्त हनुमान ने अपने पराक्रम से अर्जुन , बाली, भीम, शनिदेव जैसे बड़े-बड़े वीरों को युद्ध में पराजित भी किया है और उनका अभिमान चकनाचूर भी किया है। परंतु क्या आपको पता है कि भक्त हनुमान ने अपने जीवन में अभिमान में आकर एक ऐसा युद्ध भी लड़ा है जिसमें भक्त हनुमान की हार हुई थी। और सिर्फ इतना ही नहीं इस युद्ध में भक्त हनुमान को पराजित करने वाला कोई अन्य व्यक्ति नहीं बल्कि भगवान श्री राम का ही एक भक्त था। तो आज हम इस लेख में जानेंगे की वह कौन सा भगवान श्री राम का भक्त था जिन्होंने संकट मोचन हनुमान को पराजित कर दिया?
भगवान श्री राम के उस परम भक्त का नाम था मछिंद्रनाथ,जो परम तपस्वी थे। एक समय की बात है जब मछिंद्रनाथ का रामेश्वरम में आगमन हुआ तो वह श्री राम जी का सेतु देखकर अत्यंत भावविभोर हो गए तथा भगवान श्री राम की भक्ति में लीन होकर रामेश्वरम समुंद्र में स्नान करने लग गए। उसी क्षण वानर के वेश में मौजूद भक्त हनुमान की दृष्टि मछिंद्रनाथ पर पड़ी। उन्होंने मछिंद्रनाथ की शक्ति की परीक्षा लेने का मन बनाया। इसके लिए भक्त हनुमान ने अपनी लीला रची और भक्त हनुमान ने जोरों की बारिश करा दी। बारिश को होता देख भक्त हनुमान इस बारिश से बचने के लिए एक पहाड़ पर जोर-जोर से प्रहार करने लगे जैसे मानो गुफा बनाने का प्रयास कर रहे हो। लेकिन वास्तव में भक्त हनुमान का यह उद्देश्य था कि मछिंद्रनाथ का ध्यान भंग हो जाए तथा भक्त हनुमान पर उनकी दृष्टि पड़े। और ऐसा हुआ भी मछिंद्रनाथ ने देखा कि सामने वाले पहाड़ पर एक वानर उसे तोड़कर गुफा बनाने की नाकामयाब कोशिश कर रहा है। तो मछिंद्रनाथ ने कहा कि “ हे वानर तुम कितने मूर्ख हो यह भी नहीं जानते कि हाथों से इस तरह प्रहार करके पहाड़ में गुफा नहीं बनाई जा सकती और जब प्यास लगी हो तभी कुआ नहीं खोदा जाता इससे तो अच्छा होता कि तुम पहले से ही अपने छुपने का प्रबंध कर लेते “
यह बात सुनकर वानर रूपी भक्त हनुमान ने मछिंद्रनाथ से कहा -” आप कौन हैं ? मैंने पहले कभी आपको यहां नहीं देखा?” Which war hanuman lost
वानर की यह बात सुनकर भक्त मछिंद्रनाथ ने अपना पूरा परिचय दिया और कहा कि - “मैं एक सिद्ध योगी हूँ और मुझे भगवान श्री राम की परम कृपा से मंत्र शक्ति प्राप्त है “
इस बात पर वानर रूपी भक्त हनुमान ने सोचा, क्यों ना इस भक्त की परीक्षा ले ली जाए। मछिंद्रनाथ की परीक्षा लेने के उद्देश्य से हनुमान ने कहा - “हे परम तपस्वी क्या आपको पता है कि इस संपूर्ण सृष्टि में सिर्फ दो ही श्रेष्ठ योद्धा है जिन का मुकाबला कोई नहीं कर सकता ,एक तो है प्रभु श्री राम और दूसरे हैं महाबली हनुमान , परंतु मैंने प्रभु श्री राम की कुछ समय तक सेवा की है जिससे उन्होंने खुश होकर अपनी शक्ति का 1% भाग मुझे भी वरदान के रूप में दे दिया है। ऐसे में यदि आप परम तपस्वी हैं और प्रभु श्री राम के भक्त हैं तुम मुझे युद्ध में हराकर दिखाइए तभी मैं आपको परम तपस्वी और प्रभु श्री राम का भक्त मानूंगा अन्यथा आप सिर्फ एक ढोंगी है। “
यह सब बात सुनकर मछिंद्रनाथ को बहुत बुरा लगा उन्हें लगा कि जैसे उनकी तपस्या को और प्रभु श्री राम की लीन भक्ति को किसी ने अपमानित किया हो मछिंद्रनाथ ने बिना देर किए वानर की चुनौती को स्वीकार कर लिया और युद्ध प्रारंभ हो गया। वानर के रूप में भक्त हनुमान ने मछिंद्रनाथ पर एक से बढ़कर 7 पहाड़ फेंके परंतु इन पहाड़ों को अपनी तरफ आते देख मछिंद्रनाथ ने अपनी आंखें बंद की और प्रभु श्री राम का नाम लेने लगे। और अपनी मंत्र शक्ति से उनको निष्प्रभावी कर दिया। और वह पहाड़ हवा में एक जगह स्थिर हो गए जिसके बाद मछिंद्रनाथ ने अपनी आंखें खोली और उन पहाड़ों को उनके मूल स्थान पर वापस स्थापित कर दिया। यह सब देख कर हनुमान जी को अत्यंत क्रोध आया और उन्होंने मछिंद्रनाथ पर वहां के सबसे बड़े पर्वत को उठा लिया और मछिंद्रनाथ पर फेंकने के लिए उठा लिया । इस बार मछिंद्रनाथ ने रामेश्वरम समुंदर की कुछ बूंदें अपने हाथ में ली और बात वाताकर्षण मंत्र से सिद्ध करके उन पानी की बूंदों को वानर रूपी हनुमान पर फेंक दिया। मछिंद्रनाथ ने जैसे ही पानी की बूंदों को हनुमान पर फेंका वैसे ही हनुमान का शरीर एक जगह स्थिर हो गया। अब हनुमान चाह कर भी कोई हलचल नहीं कर पा रहे थे और उस मंत्र का इतना प्रभाव था कि हनुमान की शक्तियां छिन होने लग गई और जो पर्वत हनुमान ने उठा रखा था उसे उठाने में भी उन्हें बहुत शक्ति का उपयोग करना पड़ा। हनुमान जी को इस कष्ट में देखकर उनके पिता पवन देव वहां प्रकट हुए तथा मछिंद्रनाथ से प्रार्थना की -” हे परम तपस्वी मछिंद्रनाथ हनुमान जी को क्षमा कर दो “
पवन देव की यह प्रार्थना सुनकर मछिंद्रनाथ में हनुमान जी को अपने मंत्रों से मुक्त किया तथा इसके बाद वानर रूपी भक्त हनुमान अपने वास्तविक रूप में आ गए इसके पश्चात उन्होंने मछिंद्रनाथ से कहा -” हे मछिंद्रनाथ मैं यह भली-भांति जानता था कि आप स्वयं प्रभु नारायण के अवतार हैं। इसके बावजूद मैं आपकी भक्ति और शक्ति की परीक्षा लेने का दुस्साहस कर बैठा , मेरी आपसे प्रार्थना है कि मेरी इस भूल को क्षमा करें “ मछिंद्रनाथ ने अपनी दयालुता दिखाते हुए हनुमान जी को क्षमा कर दिया और इस प्रकार हनुमान श्री राम के ही भक्त से हार गए।
तो इस प्रकार हनुमान जी अनजाने में ही सही परन्तु अभिमान में आ कर और सामने वाले को तुच्छ समझ कर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसलिए हमे हमेशा स्मरण रखना चाहिए की कोई किसी से तुच्छ नहीं है।
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धन्यवाद !
जय श्री राम
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